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सेन्सेइ से पूछें

कर्मवाचक वाक्य (पाठ 23)

कर्मवाचक वाक्य का इस्तेमाल तब करते हैं जब वाक्य उस व्यक्ति के नज़रिए से बोला जाता है जिसपर क्रिया का प्रभाव पड़ रहा है। ऐसे वाक्यों में क्रिया करने वाले के बाद 'नि' लगता है और क्रिया के कर्मवाचक रूप का इस्तेमाल होता है।
तो, क्रिया के 'मासु'-रूप से कर्मवाचक रूप बनाने का तरीक़ा सीखते हैं। पहले उन क्रियाओं की बात करते हैं जिनमें 'मासु' के पहले 'ए' की ध्वनि वाले अक्षर आते हैं। इनमें, 'मासु' के तुरन्त पहले 'रारे' जोड़ें। तो क्रिया 'ताबेमासु' यानी “खाना” का कर्मवाचक रूप होगा, 'ताबेरारेमासु' यानी “खाया जाना”।

अब बारी उन क्रियाओं की जिनमें 'मासु' के पहले 'इ' की ध्वनि वाले अक्षर आते हैं। इनमें दो तरह की क्रियाएँ हैं। कुछ क्रियाओं में, 'मासु' के पहले लगी 'इ' की ध्वनि वाले अक्षर को उसी वर्ग के 'आ' की ध्वनि वाले अक्षर में बदलते हैं, और उसके बाद 'रे' जोड़ते हैं। जैसे 'शिकारिमासु' यानी “डाँटना”। इसमें, 'मासु' के पहले वाले 'रि' को बदल दिया 'रा' में और उसके बाद जोड़ा 'रे', तो बन गया 'शिकारारेमासु' यानी “डाँटा जाना”। इसी तरह, क्रिया 'शिमासु' यानी “करना” का कर्मवाचक रूप है 'सारेमासु' यानी “किया जाना”।
अन्य क्रियाओं में सिर्फ़ 'मासु' के पहले 'रारे' जोड़ते हैं। जैसे क्रिया 'मिमासु' यानी “देखना” का कर्मवाचक रूप है 'मिरारेमासु' यानी “देखा जाना”।

लेकिन इस नियम का एक अपवाद भी है। क्रिया 'किमासु' यानी “आना” का कर्मवाचक रूप है 'कोरारेमासु' यानी “आया जाना”। इसे याद कर लीजिए।
“अध्ययन सामग्री” में देखें।
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